थोड़ी देर पहले, दिल में कुछ खालीपन सा महसूस हुआ,
झाँक कर दिल में देखा तो, तू वहां नहीं थी !
खली पड़ी वो जगह, अजीब सा माहौल था,
तेरे चले जाने से, अब ये दिल गमगीन था !
सोचता हूँ की, अब तेरी ये जगह किसको दूँ ?
ख्याल आया, क्यूँ न इसे खुशियों से भर दूँ !
पर मेरी ख़ुशी तो तू ही थी, अब तुझे कहाँ से वापस लाऊं ?
अब तू ही बता दे, तेरी जगह अब मैं और किसे अपनाऊ !
तेरी जगह का सौदा अब दोस्ती से करना चाहता हूँ,
तुझ जैसी अब दोस्त कहाँ, अब ये सौदा भी ना कर सकता हूँ !
अब तू ही बता दे, तू ही तो इस दिल में बसा करती थी,
आखिर दूँ मैं किसको ये जगह, जहाँ तू कभी रहा करती थी !
तेरे रहते गम का साया, पास भी कभी ना आया था,
तेरी जगह पर हक ज़माने वो भी सज धज कर आय था !
तुझे अपनाकर, दिल पर अपना हक भी मैंने खोया था,
तू ही बता दे, आखिर कैसे तुने गम को रोका था !
तेरी जगह पर पहरा लगाकर, चुपचाप युहीं बैठा हूँ,
तेरे वापस आने के इंतज़ार में, आस लगाकर बैठा हूँ !
वही सवाल अब भी है मन में, फिर से तुझसे पूछता हूँ,
अब तू ही बता दे, तेरी जगह पर और किसे मैं रख सकता हूँ !!!!
अब तू ही बता दे . . . .
pratik'