मैं खुली आँखों से सपने देख रहा हूँ,
जिंदगी को आगे बढते देख रहा हूँ !
खुशियाँ, मंजिले अब पीछे छुट रही हैं,
अपने आप को दो कदम आगे देख रहा हूँ !
आज मुझे मंजिलों की उचाईयों से डर लगता है,
उन्हें न पाने का भ्रम लगता है !
पर सपने में उन्हें हराने का हौसला दिखता है,
अब मुझे सब कुछ सच लगता है !
अभी सारे साथी मुझे अकेला कर रहे हैं,
पर मुझे आगे बढ़ने का हौसला दे रहे हैं !
सपनो की दुनिया भी अजब कसक दे रही है,
कल वहाँ सबके साथ की कसम दे रही है !
रुकने का अब जी नहीं चाहता,
सपनो से बाहर अब मन नहीं मानता,
ये आखिर हो क्या गया मुझे,
कहीं मैं खुली आंखों से सपने तो नहीं देख रहा . . . .
pratik'